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उसका दोष क्या है भाग - 20 15 पार्ट सीरीज

              
                   मुखौटा   ( दैनिक प्रतियोगिता)
  
   "माँ तुम्हें क्या लगता है सेठ जी मेडिकल में नामांकण के लिए कर्ज देंगे" –मीना ने आशंका व्यक्त करते हुए अपनी मां से पूछा।
   दोनों मां बेटी सेठ जी के बंगले के बगीचे में ही खड़ी बात कर रही थीं। मीना के मेडिकल में नामांकन के लिए कर्ज मांगने पर सेठ जी ने मीना को बुलवाया था। दोनों मां बेटी ने सोचा शायद प्रतियोगिता परीक्षा का प्राप्तांक जानने के लिए सेठ जी ने बुलाया है। कुछ ही दिन पूर्व सेठानी की मृत्यु हुई थी इसलिए मीना को आशंका थी,पत्नी की मृत्यु से दुखी सेठ जी उसकी सहायता करने पर ध्यान देंगे या नहीं।
   "क्यों नहीं बेटी सेठ की बहुत दयालु हैं।उनके पास पैसों की भी कमी नहीं।उनके तीनों बच्चे विदेश बसे हुए हैं, वह भी अच्छी नौकरी में। विदेश में अपने बंगले भी बनवा लिए हैं उन्होंने। यहाँ भी सेठ जी का इतना बड़ा व्यवसाय है। उन्होंने अपने सभी नौकरों के बच्चों की पढ़ाई में सहायता किया  है । यह पहला अवसर है जब कुछ मांगा है मैंने,वह भी कर्ज के रूप में । वैसे भी उनको सिर्फ नाम लिखवाने और पहले साल के शुल्क में ही तो सहायता करनी है। अगले साल से तो तुम्हें छात्रवृत्ति मिलना प्रारंभ हो जाएगा। सेठानी  तो हमेशा कहती थी तुम यदि मेडिकल निकालोगी तो तुम्हारी पूरी पढ़ाई वही करवाएंगी। सेठजी को भी सब ज्ञात है सेठानी जी तुम्हारी मेडिकल की पढ़ाई अपने खर्चे से करवाना चाहती थीं,इसलिए अवश्य देंगे।
   मीना –माँ अब कौन जानता था इतनी जल्दी इस दुनिया को छोड़ जाएंगी मालकिन। उनके सामने तो सेठजी भी बहुत स्नेह से मुझसे बात करते थे,मेरी पढ़ाई के लिए भी हमेशा पूछते। बिल्कुल ऐसे लगता था जैसे कि वे मेरे अपने दादाजी हैं।
   दोनों मां बेटी बात करते-करते रुक गईं,सामने से सेठजी को आते देख कर। मीना की मां को चाय बनाने के लिए भेजकर मीना से उन्होंने कहा –
     "मीना तुम्हारी मां ने तुम्हारे मेडिकल में नामांकण के लिए मुझ से उधार मांगा है। मैं नामांकण ही नहीं तुम्हारी पूरी पढ़ाई करवा दूंगा। परन्तु उसके लिए मेरी एक शर्त है। तुम्हें मुझसे विवाह करना होगा। मुझसे विवाह करने के लिए यदि तैयार हो तो कोनसेलिंग की तैयारी करो। हमारी शादी होने के अगले दिन ही मैं जाकर तुम्हारा नामांकण करवा दूंगा"।
    दादा समान स्नेहिल भाव रखने वाले सेठ जी का यह अवांछित प्रस्ताव सुन मीना नि:शब्द आश्चर्य से सेठजी की ओर देख रही थी। पत्नी की मृत्यु का एक महीना भी नहीं हुआ उनके आदर्शवाद का मुखौटा उतर गया।


    स्वरचित
      ©®
   निर्मला कर्ण
 राँची,झारखण्ड
   

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